pdf BP 17-1-3-04 BSSTP Sri Guru tattva - part 2
833 downloads
जो स्वयंको वैष्णव मानता है वह branded अवैष्णव है।जो अपनेको गुरु या श्रेष्ठ मानते हैं, वे गुरु होने के योग्य नहीं हैं। जो अपनेको शिष्य का शिष्य मानते हैं, केवल वे ही गुरु होनेके योग्य हैं।
वर्ष—१७ • संख्या—१-३ • प्रबन्ध क्रमांक—४
श्रीगुरुतत्त्व और श्रील प्रभुपाद (२)
श्रील भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर 'प्रभुपाद' का वाणी-वैभव